ईंट से बना इटावा क्या अब कहलाएगा ? ( जानें इसके पीछे का इतिहास)
इतिहास
इटावा भारत में उत्तर प्रदेश राज्य में यमुना नदी के तट पर एक शहर है। यह इटावा जिला का प्रशासनिक मुख्यालय है। यह शहर 1857 के विद्रोह के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र था (एलन ओक्टेवियन ह्यूम, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक थे तब जिला कलेक्टर थे)। यमुना और चंबल के बीच भी संगम या संगम का स्थान है। यह भारत के महान बाड़ा के अवशेषों की भी साइट है। प्रसिद्ध हिंदी लेखक गुलाबराई इटावा के मूल निवासी थे।
इटावा के पास एक समृद्ध और समृद्ध इतिहास है। यह माना जाता है कि मध्ययुगीन काल में कांस्य युग से ही जमीन अस्तित्व में थी। आर्यन जाति के सबसे पहले लोग जो एक बार यहां रहते थे उन्हें पांचाल के नाम से जाना जाता था। यहां तक कि पौराणिक किताबों में, इटावा महाभारत और रामायण की कहानियों में प्रमुख रूप से प्रकट होता है। बाद के वर्षों के दौरान, इटावा चौथी शताब्दी ईस्वी में गुप्त राजवंश के शासन के अधीन थे। इटावा 1857 के विद्रोह के दौरान एक सक्रिय केंद्र था और ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ाई में कई स्वतंत्रता सेनानियों ने विद्रोह के कार्यकाल के दौरान यहां रहने का प्रयास किया था। आज भी, इटावा के शहर में भारत के महान बाड़ा से कुछ अवशेष हैं, जो ब्रिटिश शासकों द्वारा स्थापित अंतर्देशीय लाइन थी। यह पाया गया है कि इटावा का नाम ईंट बनाने के नाम पर लिया गया शब्द है क्योंकि सीमाओं के पास हजारों ईंट केंद्र हैं।
यातायात और परिवहन
वायु मार्ग
इटावा का सबसे निकटतम हवाई अड्डा आगरा और ग्वालियर में हैं।
रेल मार्ग
इटावा रेलमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। इसके अतिरिक्त इटावा ज़िले में अन्य 6 रेलवे स्टेशन सराय भूपत (8 किलोमीटर), जसवंतनगर (16 किलोमीटर), बलराय (26 किलोमीटर), एकदिल (10 किलोमीटर), समहो (28 किलोमीटर) और भरथना (19 किलोमीटर) स्थित है।
सड़क मार्ग
भारत के कई प्रमुख शहरों से इटावा सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। इटावा ज़िला ग्वालियर, आगरा, फर्रूखाबाद, मैनपुरी, कानपुर और जालौन आदि से सड़क मार्ग द्वारा पूरी तरह से जुड़ा हुआ है।
उद्योग और व्यापार
इस शहर में कपास और रेशम बुनाई के महत्त्वपूर्ण उद्योग व तिलहन मिलें हैं। जिले में धान मिलें भी बहुत बड़ी संख्या में हैं। इटावा घी का वितरण केंद्र भी है।
कृषि और खनिज
इटावा यमुना और इसकी सहायक नदियों द्वारा अपवाहित जलोढ़ भूभाग पर स्थित है और इस क्षेत्र की सिंचाई गंगा नहर प्रणाली की एक नहर द्वारा होती है। यहाँ की फ़सलों में गेहूँ, मकई, जौ और मोटा अनाज शामिल हैं। विशालकाय खड्डों के इस क्षेत्र में नदियों के किनारे मिट्टी के अपरदन की समस्या भी रहती है। पुनर्ग्रहण और कर लगाने संबंधी परियोजनाओं से कुछ भूमि वापस पाने में सहायता मिली है।
शिक्षण संस्थान
इटावा के शिक्षण संस्थानों में गवर्नमेंट इंटर कॉलेज, एच.एम.एस.इस्लामिया इंटर कॉलेज, कर्म क्षेत्र पी॰जी॰ कालेज, बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रोद्योगिकी महाविद्यालय शामिल हैं।
पर्यटन
सुमेर सिंह का किला, चम्बल, जुगरामऊ गांव, टैक्सी मंदिर, बाबरपुर, बकेवर, चकरनगर, जसौहारन, अहीरपुर, प्रताप नगर और सरसईनावर आदि यहाँ के प्रमुख पर्यटन स्थल है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी इटावा काफ़ी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इटावा की जामा मसजिद प्राचीन बौद्ध या हिंदू मंदिर के खंडहरों पर बनाई गई मालूम होती है। भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी रुकमणी का मायका कुन्दनपुर जो की वर्तमान में कुदरकोट के नाम से जाना जाता है इसी जिले में है। यहाँ इटावा भिंड मार्ग के जंगलों में इस क्षेत्र का प्रसिद्ध कालीवाहन्न मंदिर है जहाँ प्रतिवर्ष भव्य आकर्षक मेले का आयोजन होता है जिसे देखने के लिए दूर दूर से पर्यटक आते है।
मुलायम सिंह से इस शहर का क्या रिश्ता
समाजवादी पार्टी के संरक्षक दिवंगत मुलायम सिंह यादव का जन्म इटावा के सैफई में हुआ था. मुलायम सिंह यादव दंगल में कई पहलवानों को धूल चटा चुके थे, हालांकि पहलवानी में ज्यादा दिन तक उनका मन लगा नहीं और सियासी दांव आजमाने लगे. मुलायम सिंह यादव यूपी की सियासत में आए भी और 3 बार सूबे के सीएम चुने गए. वहीं, केंद्र सरकार में भी उन्हें रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी एक बार मिल चुकी है.
पिछले दिनों इटावा में जिला पंचायत बोर्ड की बैठक आयोजित की गई. बैठक में इटावा का नाम बदलकर सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के नाम पर मुलायम नगर करने की मांग की गई. दरअसल, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के चचेरे भाई अभिषेक यादव इटावा के जिला पंचायत अध्यक्ष हैं. उन्होंने ही यह प्रस्ताव रखा है. अभिषेक का मानना है कि इटावा की पहचान मुलायम सिंह यादव से है
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